दिशा और राशि का महत्व | vastu shastra for house
वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से विचार करते हुए हम आठ दिशाओं को महत्व देते हैं। क्योंकि शास्त्र का मूल दिशा पर अवलंबित है। वैदिक वास्तुशास्त्र में प्रत्येक दिशा का एक विशिष्ट गुणधर्म बताया गया है। पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण मुख्य दिशाएं तथा आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य एवं ईशान्य चार उपदिशाएं तथा मध्य में ब्रह्मस्थान है। इसलिए प्रत्येक दिशा का स्वयं का गुणधर्म और स्वभाव विशेष का पता चलता है। किस दिशा में क्या होना चाहिए? क्या नहीं होना चाहिए? इसका मार्गदर्शन दिशाओं से ही मिलता है। अपना जीवन सुखमय बनाने के लिए प्रस्तुत है, वास्तुशास्त्र के महत्वपूर्ण अंग दिशा तथा उनके गुणधर्म की जानकारी।
1. पूर्व दिशा
पूर्व अर्थात प्रथम दर्जे की, उच्च दर्जे की, सर्वोत्तम दिशा। पूर्व दिशा में अंधकार का नाश तथा प्रकाश का प्रारम्भ होता है।
2. पश्चिम दिशा
पश्चिम अर्थात पीछे की ओर आने वाली दिशा, सूर्यास्त की दिशा, जहां प्रकाश का अन्त और अन्धकार का प्रारम्भ होता है, वह दिशा
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3. उत्तर दिशा
उत्तर दिशा कई अर्थों में अपना नाम सार्थक करने वाली दिशा है। इस दिशा में अनेक प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता है। कोई भी प्रश्न समस्या नहीं उत्पन्न करता। हरेक प्रश्न का शीघ्र उत्तर इस दिशा में मिलता है। अष्टलक्ष्मी की धनलक्ष्मी का स्थान इस दिशा में होता है।
4. दक्षिण दिशा
यह ध्रुव सत्य है कि मूल स्वरूप से दक्षिण दिशा अशुभकारी है, किन्तु यह बहुत अच्छी दिशा भी है। दक्षिण अर्थात द-क्षीण अर्थात धीरे-धीरे क्षीण करने वाली दिशा। ऐसे घर में निर्माण से तीन-चार वर्षों तक खूब आमदनी होती है।
सभी दिशाओं का ज्योतिषशास्त्र में किसी ना किसी राशि से संबंध होता है। ऐसे में जहां किसी राशि के लिए कोई दिशा शुभ फलदायी होती है तो वहीं वह दिशा किसी दूसरी राशि के लिए नुकसानदायक हो सकती है।
ऐसे में ज्योतिष व वास्तु के जानकारों का मानना है कि यदि व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार लकी दिशा को ध्यान में रखते हुए काम करें तो इसका ना सिर्फ उसकी सेहत पर अच्छा असर होगा, बल्कि वह उसके कॅरियर और पैसों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है।
1. मेष राशि
2. वृषभ राशि
3. मिथुन राशि
4. कर्क राशि
5. सिंह राशि
6. कन्या राशि
7. तुला राशि
8. वृश्चिक राशि
9. धनु राशि
10. मकर राशि
11. कुंभ राशि
12. मीन राशि